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चीन से जारी तनाव के बीच सेनाओं को मिली 500 करोड़ के घातक हथियारों की खरीद को मंजूरी

नई दिल्‍ली,21 जून (इ खबरटुडे)। पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से जारी तनाव के बीच सरकार ने तीनों सेनाओं को घातक हथियार और गोला-बारूद की खरीद के लिए 500 करोड़ रुपये के आपात फंड को मंजूरी दी है। यानी सरकार ने तीनों सेनाओं को उनकी जरूरत के मुताबिक 500 करोड़ रुपये तक के घातक हथ‍ियारों और गोला बारूद को खरीदने को छूट दी है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार ने तीनों सेनाओं के उप प्रमुखों को खतरनाक अस्‍त्र शस्‍त्रों की तात्‍कालिक और आपात खरीद के लिए 500 करोड़ रुपये तक की वित्तीय शक्तियां दी हैं।

चीनी आक्रामकता को मिलेगा मुंहतोड़ जवाब

दरअसल, पूर्वी लद्दाख में चीन ने अपने सैनिकों की संख्‍या बढ़ा दी है। ऐसे में चीनी सेना की आक्रामकता और वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर बड़ी संख्या में अपने सैनिकों की तैनाती के बाद सरकार की ओर से आपात स्थिति में हाथियारों की खरीद की शक्ति को सेना को देने की जरूरत महसूस की गई थी। इसी के मद्देनजर उक्‍त फैसला लिया गया है। सरकार ने सेनाओं को यह अधिकार पहली बार नहीं दिए हैं। इससे पहले उड़ी हमले के बाद भी सशस्त्र बलों को इसी तरह की वित्तीय शक्तियां प्रदान की गई थीं। उस वक्‍त वायुसेना ने बालाकोर्ट एयर स्‍ट्राइक को अंजाम दिया था।

शॉर्ट नोटिस पर सेना रहे तैयार इसलिए उठाया कदम

सरकार की ओर से सेनाओं को यह छूट शॉर्ट नोटिस पर खुद को तैयार रखने के लिहाज से दी गई है। बालाकोट एयर स्‍ट्राइक के बाद भारतीय वायु सेना ने सरकार की ओर से दी गई ऐसी छूट का सर्वाधिक लाभ उठाया था। वायुसेना ने तब बड़ी संख्या में घातक हथियार खरीदे हैं। इन हथियारों में हवा से जमीन पर मार करने वाली और हवा से हवा में मार करने वाली स्‍टैंड ऑफ स्‍पाइस-2000 (Spice-2000) और स्‍ट्रम अटाका मिसाइलें शामिल हैं। वहीं सेना ने इजरायल की स्पाइक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलें हासिल की हैं। सेना ने अमेरिका से बड़ी मात्रा में गोला बारूद की खरीद भी की है।

भारत की बढ़ रही ताकत

अभी हाल ही में स्वीडन के थिंक टैंक सिपरी की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें कहा गया था कि भारत अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को भी बढ़ा रहा है। भारत के परमाणु हथियारों के जखीरे में पिछले साल 10 और हथियार जुड़े हैं और साल 2020 की शुरुआत में भारत के पास 150 परमाणु हथियार थे। सालभर पहले यानी 2019 की शुरुआत में यह संख्या 130 से 140 तक बताई गई थी। हालांकि भारत अभी भी इस मामले में चीन से पीछे है।

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